कंगना के बयान से फिर BJP ने किया किनारा:कहा- ये व्यक्तिगत बयान; 3 कृषि कानूनों पर कहने के लिए अधिकृत नहीं, खंडन किया
हिमाचल से BJP सांसद कंगना रनोट रद्द किए गए 3 कृषि कानूनों पर बयान देने के बाद दोबारा फंसती दिख रही हैं। हरियाणा चुनावों के बीच आए इस बयान के बाद भाजपा ने एक बार फिर कंगना के बयान से किनारा कर लिया है। भाजपा सीनियर लीडर एवं प्रवक्ता गौरव भाटिया ने वीडियो जारी कर कंगना को 3 कृषि कानूनों पर बोलने के लिए अनधिकृत बताया है।
वक्ता गौरव भाटिया ने कहा कि सोशल मीडिया पर भाजपा की सांसद कंगना रनोट का बयान 3 कृषि कानूनों का लेकर, जो पहले वापस लिए गए थे, चल रहा है। मैं बिल्कुल स्पष्टता से कहना चाहता हूं कि ये बयान कंगना रनोट का व्यक्तिगत है। भारतीय जनता पार्टी की और से कंगना रनोट ऐसा कोई बयान देने के लिए अधिकृत नहीं हैं और ना ही उनका बयान पार्टी की सोच है, जो 3 कृषि कानूनों को लेकर उसको दर्शाता है। इसलिए उस बयान का हम खंडन करते हैं।
दरअसल, 2 दिन पहले ही हिमाचल प्रदेश में एक कार्यक्रम के दौरान मीडिया से बातचीत करते हुए कंगना रनोट ने 3 कृषि कानूनों को दोबारा लागू करने की मांग की है। कंगना ने कहा कि किसानों को खुद ये कानून लागू करने की मांग करनी चाहिए। नवंबर 2021 में केंद्र सरकार को 14 महीने के बाद किसान आंदोलन के बाद ये कानून वापस लेने पड़े थे।
इस बयान के बाद विपक्ष ने भी कंगना के साथ भाजपा की घेराबंदी शुरू कर दी थी। पंजाब से अकाली दल के प्रवक्ता अर्शदीप सिंह कलेर ने तो भाजपा को कंगना को पार्टी से निकालने और उस पर नेशनल सिक्योरिटी एक्ट (NSA) लगाने की मांग की थी।
इसके साथ ही हरियाणा कांग्रेस ने भी इसका विरोध किया और कहा कि भाजपा फिर से 3 कृषि कानून वापस लाने का प्लान बना रही है। कांग्रेस किसानों के साथ है। भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जितना भी जोर लगा लें, ये कानून लागू नहीं होने दिए जाएंगे।
वहीं पंजाब लोकसभा में विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा ने कहा था कि भाजपा अपने किसान विरोधी एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए रनोट का इस्तेमाल कर रही है, उन्होंने सरकार से तत्काल स्पष्टीकरण देने की मांग रखी थी।
3 कृषि कानूनों पर कंगना का ये तीसरा बयान था। हिमाचल प्रदेश के मंडी में दिए गए बयान से पहले भी कंगना 2 बार कृषि कानूनों पर बोल चुकी हैं और सांसद बनने के बाद ये उनका दूसरा बयान है। वहीं, सांसद बनने के बाद आए उनके बयान से भाजपा पहले भी पल्ला झाड़ चुकी है।
26 अगस्त को भाजपा को बयान जारी करना पड़ा था। जिसमें लिखा था- पार्टी कंगना के बयान से असहमत है। उन्हें पार्टी के नीतिगत मुद्दों पर बोलने की इजाजत नहीं है। वे पार्टी की तरफ से बयान देने के लिए अधिकृत नहीं हैं। भाजपा ने कंगना को हिदायत दी है कि वे इस मुद्दे पर आगे कोई बयान न दें।
कंगना ने कहा कि किसानों के जो लॉ हैं, जो रोक दिए गए, वे वापस लाने चाहिए। किसानों को खुद इसकी डिमांड करनी चाहिए। हमारे किसानों की समृद्धि में ब्रेक न लगे।
ब्यूरोक्रेसी, हमारे लीडर, हर तीन-तीन महीनों में इलैक्शन करवाते हैं। वन नेशन, वन इलैक्शन देश के विकास में जरूरी हैं। ऐसे ही हमारे किसान पिलर ऑफ स्ट्रेंथ (मजबूती के स्तंभ) हैं। वे खुद अपील करें कि हमारे तीनों कानूनों को लागू किया जाए। हमारे कुछ राज्यों ने इन कानूनों को लेकर आपत्ति जताई थी, उनसे हाथ जोड़ विनती करती हूं कि इन्हें वापस लाएं।
अगस्त में भास्कर को दिए इंटरव्यू में कंगना ने कहा था कि पंजाब में किसान आंदोलन के नाम पर उपद्रवी हिंसा फैला रहे थे। वहां रेप और हत्याएं हो रही थीं। अगर हमारा शीर्ष नेतृत्व मजबूत नहीं रहता तो किसान आंदोलन के दौरान पंजाब को भी बांग्लादेश बना दिया जाता। किसान बिल को वापस ले लिया गया, वरना इन उपद्रवियों की बहुत लंबी प्लानिंग थी। वे देश में कुछ भी कर सकते थे।
किसान आंदोलन के बीच कंगना रनोट ने 27 नवंबर 2020 को रात 10 बजे फोटो पोस्ट किया था, जिसमें लिखा था कि किसानों के प्रदर्शन में शामिल हुई महिला वही मशहूर बिलकिस दादी है, जो शाहीन बाग के प्रदर्शन में थी। जो 100 रुपए लेकर उपलब्ध है। हालांकि, बाद में कंगना ने पोस्ट डिलीट कर दिया था, लेकिन कई सोशल मीडिया यूजर्स ने इस पोस्ट को खूब शेयर किया था। इससे एक्ट्रेस विवादों में घिर गई थी।
5 जून 2020 को केंद्र सरकार एक अध्यादेश के जरिए 3 कृषि बिल लेकर आई थी। सितंबर 2020 को केंद्र सरकार लोकसभा और राज्यसभा में फार्म बिल 2020 लेकर आई। दोनों सदनों से यह बिल पास पास हो गए, लेकिन किसानों को यह बिल मंजूर नहीं थे।
किसानों को आशंका थी कि नए बिल से मंडियां खत्म हो जाएंगी। MSP सिस्टम खत्म हो जाएगा। बड़ी कंपनियां फसलों की कीमतें तय करने लगेंगी। वे इसके विरोध में उतर आए। पंजाब के किसान रेल की पटरियों पर बैठ गए, लेकिन सरकार ने उन्हें वहां से हटा दिया।
किसान आंदोलन के दौरान अप्रैल-मई 2021 में पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, असम और पुडुचेरी में विधानसभा चुनाव हुए। असम में BJP सरकार बनाने में कामयाब रही, लेकिन उसे 11 सीटों का नुकसान हुआ। पुडुचेरी में वह गठबंधन की सरकार बनाने में कामयाब रही। जबकि केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में BJP को हार का सामना करना पड़ा। इन चुनावों में विपक्ष ने प्रधानमंत्री और BJP को खूब घेरा था। किसान नेता राकेश टिकैत ने पश्चिम बंगाल में BJP के खिलाफ प्रचार किया था।
इसके बाद BJP की इंटरनल रिपोर्ट, सेना में नाराजगी, उप चुनावों में मिली हार और 5 राज्यों में होने वाले चुनावों को देखते हुए PM मोदी ने 19 नवंबर 2021 को तीनों कृषि कानून वापस ले लिए।
आखिरकार 14 महीने की तकरार के बाद 29 नवंबर को लोकसभा और राज्यसभा दोनों ही सदनों से बिना किसी चर्चा के ध्वनिमत से कृषि कानून वापस ले लिया गया। 11 दिसंबर को किसानों ने आंदोलन खत्म करने का ऐलान किया और दिल्ली बॉर्डर पर विजय दिवस मनाया।
दो महीने बाद यानी 25 नवंबर को पंजाब और हरियाणा के किसानों ने दिल्ली चलो आंदोलन का ऐलान किया। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी UP सहित कई शहरों में किसानों का प्रदर्शन शुरू हो गया।
सरकार और किसानों के बीच 11 बार बातचीत हुई, पर कोई नतीजा नहीं निकला। इसके बाद भारतीय किसान यूनियन सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा। कोर्ट ने 18 महीने के लिए तीनों कृषि कानूनों पर रोक लगा दी। साथ ही इन कानूनों को रिव्यू करने के लिए एक कमेटी बनाई, पर किसान नहीं माने। उनका कहना था- ‘जब तक तीनों कानून वापस नहीं लिए जाते, हम आंदोलन जारी रखेंगे।’
इस बीच किसानों ने पक्के घर करना शुरू कर दिए। टीकरी और सिंघु बॉर्डर पर कच्चे-पक्के घर बनना शुरू हो गए। कई जगहों पर किसानों ने CCTV कैमरे भी लगवाए, ताकि पुलिस की एक्टिविटी को देख सकें।