छत्तीसगढ़ में पंचायत का तुगलकी फरमान: कब्जा हटाने के लिए हरी-भरी फसलों को किया पशुओं के हवाले, प्रशासन बना मूकदर्शक
लोरमी: छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले के लोरमी तहसील के सेमरसल के आश्रित गांव नवागांव बटहा में पंचायत के तुगलकी फरमान का एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है। यहां सैकड़ों एकड़ घास भूमि पर वर्षों से दर्जन भर से अधिक ग्रामीण कब्जा कर खेती कर रहे थे। इस भूमि को अतिक्रमण से मुक्त कराने के लिए पंचायत प्रतिनिधियों की सहमति से हरी-भरी फसलों और सब्जियों को मवेशियों के हवाले कर दिया गया, जिससे उन फसलों को भारी नुकसान पहुंचा। इस पूरी प्रक्रिया में गांव के कुछ दबंग ग्रामीण बलपूर्वक लाठियों के दम पर कार्रवाई करवा रहे हैं।जानकारी के मुताबिक, ग्रामीणों ने पंचायत से दो महीने का समय मांगा था ताकि वे अपनी फसल काट सकें, लेकिन उनकी इस अपील को अनसुना कर दिया गया। प्रत्यक्षदर्शियों एम.के. दीक्षित और सुखनंदन कश्यप ने बताया कि किसानों के सामने ही उनकी फसलों को मवेशियों द्वारा नष्ट किया गया। फसलें बर्बाद होते देख भी कोई उनकी मदद के लिए आगे नहीं आया, और पंचायत की तरफ से केवल नोटिस की एक कॉपी दी गई, जबकि तहसीलदार और एसडीएम से कोई नोटिस प्राप्त नहीं हुआ।
इस घटना के बारे में सेमरसल गांव के सरपंच प्रतिनिधि वीर सिंह नेताम ने बताया कि कब्जाधारी किसानों को तीन बार नोटिस जारी किया गया था, बावजूद इसके अतिक्रमण नहीं हटाया गया। इसके चलते पंचायत ने हरी-भरी सब्जियों और धान की फसल पर करीब 200 से अधिक मवेशियों को छोड़कर फसल को नुकसान पहुंचाने का निर्णय लिया। सरपंच का कहना है कि यदि फसलें बचीं रहतीं, तो ग्रामीण दोबारा उस जमीन पर कब्जा कर सकते थे। इसलिए गांव के यादव समुदाय को फसलों को मवेशियों से चराने के लिए कहा गया।
इस कार्रवाई का नेतृत्व करने वाले ग्रामीण अनिल उपाध्याय ने कहा कि यह गोचर भूमि है और जब तक अतिक्रमण पूरी तरह साफ नहीं हो जाता, तब तक वे मवेशियों को यहां चराते रहेंगे। उन्होंने बताया कि इस कार्रवाई में एसडीएम साहब भी मौजूद थे और उनके निर्देश पर यह कार्रवाई की गई है। हालांकि, उनके पास मवेशियों को फसल चराने के लिए कोई लिखित आदेश नहीं है, लेकिन पंचनामा में इसका उल्लेख किया गया है, और मौखिक आदेश के आधार पर ही वे काम कर रहे हैं।
ग्रामीण एम.के. दीक्षित ने बताया कि गांव में सर्वसम्मति से यह फैसला लिया गया था कि कब्जाधारी अपनी फसल काटने के बाद जमीन छोड़ देंगे। इसके लिए उन्होंने पंचायत से दो महीने का समय भी मांगा था, लेकिन गांव के कुछ दबंग लोगों द्वारा दबाव डालकर फसलों को मवेशियों से चरवाया जा रहा है, जिससे किसानों को भारी आर्थिक नुकसान हो रहा है। उन्होंने बताया कि खेती में हजारों रुपये खर्च करने के बावजूद उन्हें कोई फायदा नहीं हो रहा है और उनकी कोई सुनवाई भी नहीं हो रही है।
एम.के. दीक्षित ने बताया कि लोरमी विधानसभा क्षेत्र से पूर्व विधायक धर्मजीत सिंह, केंद्रीय राज्य मंत्री तोखन साहू, और डिप्टी सीएम अरुण साव जैसे बड़े नेता जुड़े हुए हैं। इसके अलावा, आप पार्टी के पंजाब राज्यसभा सांसद संदीप पाठक भी इसी गांव से आते हैं। बावजूद इसके, गरीब किसानों की मदद के लिए कोई आगे नहीं आया। किसानों ने प्रशासन से दो महीने की मोहलत मांगी है ताकि वे अपनी फसल काट सकें और नुकसान से बच सकें। इसके बाद वे जमीन छोड़ने को तैयार हैं।
इस मामले को लेकर लोरमी के एसडीएम अजीत पुजारी ने बताया कि जनदर्शन में यह शिकायत आई थी कि गांव में करीब 70-80 एकड़ जमीन पर अतिक्रमण किया गया है। यह जमीन बड़े झाड़ और छोटे झाड़ के जंगल के नाम पर दर्ज है, जो सिद्धबाबा आश्रम के पास स्थित है। इस जमीन पर 54 अतिक्रमणकारियों ने सब्जी और धान की खेती कर रखी थी, जो अवैध थी। प्रशासन ने कई बार नोटिस जारी किया, लेकिन अतिक्रमण नहीं हटने पर पिछले शनिवार को कार्रवाई करते हुए 70 एकड़ जमीन को अतिक्रमण मुक्त करा दिया गया। इस दौरान कच्चे-पक्के निर्माण को भी ग्राम पंचायत के सहयोग से एक्सकवेटर और जेसीबी की मदद से हटाया गया।
एसडीएम अजीत पुजारी ने यह भी कहा कि ग्राम पंचायत ने प्रस्ताव पारित कर ग्रामीणों को कब्जा हटाने के लिए नोटिस जारी किया था और मवेशियों को फसल चराने की कार्रवाई पंचायत का सामूहिक निर्णय था। प्रशासन ने कभी मवेशियों से फसल चराने का निर्देश नहीं दिया, हालांकि यह कार्यवाही एसडीएम की मौजूदगी में ही शुरू की गई थी।
अब देखना यह है कि प्रशासन इस मामले में कब तक संज्ञान लेकर उचित कार्रवाई करेगा, और क्या ग्रामीणों की मांग को स्वीकार कर उन्हें दो महीने का समय दिया जाएगा।