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जब RSS ने कांग्रेस का समर्थन किया:आधी रात अटल के मंत्री से मांगा था इस्तीफा; क्या अब मोदी से नाराज है संघ

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी RSS सीधे तौर पर राजनीति तो नहीं करता, लेकिन उसकी नर्सरी से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आते हैं। जहां से निकले नेता देश के 10 राज्यों में मुख्यमंत्री और 16 राज्यों में राज्यपाल हैं। चुनावों में टिकट मिलना, मंत्री बनना या मुख्यमंत्री की ताजपोशी हो, आरोप लगता है कि रिमोट कंट्रोल इसी संगठन के हाथ में है।

हालांकि, BJP और RSS की टॉप लीडरशिप के हालिया बयान साफ इशारा कर रहे हैं कि इस वक्त BJP और RSS के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है।

क्या एक बार फिर BJP और RSS के संबंधों में सब कुछ सही नहीं है?
पॉलिटिकल एक्सपर्ट आरती जेरथ के मुताबिक BJP और RSS में सब सही नहीं है। 2019 लोकसभा चुनाव के बाद से ही BJP और संघ के बीच टकराव बढ़ने शुरू हो गए थे।

RSS कार्यकर्ता और लेखक रतन शारदा संघ के मुखपत्र ‘ऑर्गेनाइजर’ में छपे अपने एक आर्टिकल में लिखते हैं, ‘जो लोग इस तरह की बात करते हैं, उनसे मैं कहना चाहता हूं कि संघ BJP की फील्ड फोर्स नहीं है। दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी BJP के पास अपने कार्यकर्ता हैं।’

RSS और BJP के बीच 2019 के बाद से टकराव बढ़ रहा था। इसकी 6 बड़ी वजहें दिखती हैं…

1. कृषि कानून और श्रम सुधार कानून

  • 3 जून 2022 को जब केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने 3 कृषि बिल काे संसद के दोनों सदन से पास किया तो देशभर में आंदोलन शुरू हो गए। RSS से जुड़े भारतीय किसान संघ यानी BKS ने भी किसानों के आंदोलन का समर्थन किया।
  • BKS के महासचिव बद्री नारायण चौधरी ने कहा कि यह कानून बिजनेसमैन को फायदा पहुंचाने वाला और इससे किसानों का जीवन मुश्किल होने वाला है। किसान संघ ने गांव स्तर पर इसके खिलाफ प्रस्ताव भी पास किया था। ये तस्वीर 2020 की है, जब RSS से जुड़े भारतीय किसान संघ के महासचिव बद्री नारायण चौधरी ने मोदी सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ बयान दिया था।
  • जनवरी 2022 में RSS से जुड़े एक दूसरे संगठन भारतीय मजदूर संघ यानी BMS ने श्रम कानूनों में सुधार के खिलाफ मोदी सरकार को पत्र लिखा। इस पत्र में श्रम सुधार कानून को बड़े बिजनेसमैन को लाभ पहुंचाने वाला बताया। साथ ही कहा कि अगर सरकार अपना फैसला वापस नहीं लेती है तो संगठन देशभर में आंदोलन करेगा।

2. बेरोजगारी पर सरकार और RSS के बीच टकराव

  • अक्टूबर 2022 में RSS महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में बेरोजगारी और आर्थिक नीति को लेकर मोदी सरकार पर निशाना साधा था।
  • उन्होंने कहा था कि देश में 20 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं, 4 करोड़ लोग बेरोजगार हैं। गरीबों और अमीरों के बीच आय और धन की असमानता बढ़ती जा रही है।
  • देश के एक बड़े हिस्से में अभी भी लोगों को पीने के लिए साफ पानी और खाने के लिए सही पोषण नहीं मिल पा रहा है। गरीबी रूपी दानव का अभी भी वध होना बाकी है।
  • ऐसे में किसी सरकार को सफल कैसे माना जा सकता है। यह परिस्थिति किसी भी सरकार की अक्षमता को दिखाती है।

3. राम मंदिर पर टकराव

  • RSS के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने दैनिक भास्कर को बताया, ‘राम मंदिर के मामले में BJP ने RSS की बात सुननी बंद कर दी थी। शुरुआत चंपत राय पर वित्तीय गड़बड़ी के आरोप से हुई थी। RSS ने चंपत राय को चित्रकूट की प्रतिनिधि सभा में बुलाया और सख्त चेतावनी भी दी। इसके बाद BJP ने राम मंदिर का मसला सीधा अपने हाथ में ले लिया।’
  • इसी तरह लोकसभा चुनाव से पहले रामलला की प्राण प्रतिष्ठा कराने और नाराज शंकराचार्य को नहीं मनाने से भी RSS काफी नाराज हुआ। RSS इस आयोजन में उन लोगों को बुलाना चाहता था, जिन्होंने राममंदिर से जुड़ा कोई संकल्प लिया हो।
  • कई लोगों ने शपथ ली थी कि मंदिर बनने तक चप्पल और पगड़ी नहीं पहनेंगे। अयोध्या के आसपास कुछ राजपूत कम्युनिटी हैं, जिन्होंने मंदिर बनने तक पगड़ी न पहनने का संकल्प लिया था। RSS की लिस्ट में शामिल इन लोगों को तरजीह नहीं दी गई।
  • इसी तरह प्राण प्रतिष्ठा के मौके पर PM मोदी ने खुद पूजा करने का फैसला लिया था। RSS नहीं चाहता था कि कोई राजनीतिक व्यक्ति ये जिम्मेदारी ले। RSS चाहता था कि ये जिम्मेदारी किसी बड़े धर्मगुरु, संत या फिर लालकृष्ण आडवाणी को दी जाए, जिन्होंने राम मंदिर आंदोलन की अगुआई की थी।

4. दलबदलुओं की एंट्री और टिकट देने का विरोध

  • RSS मुखपत्र ऑर्गेनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर के मुताबिक BJP को यह आकलन करना चाहिए कि दागी नेताओं को दल में एंट्री देने से क्या भ्रष्टाचार मुक्त राजनीति के एजेंडे पर पार्टी की छवि को कुछ नुकसान हुआ है।
  • पूनम महाजन को मुंबई नॉर्थ सेंट्रल से टिकट नहीं दिए जाने पर राज्य के सीनियर RSS कार्यकर्ताओं ने नाराजगी जाहिर की थी। साफ है कि कई सीटों पर दलबदलुओं और दागी को टिकट दिए जाने से RSS में नाराजगी थी।
  • प्रतापगढ़, श्रावस्ती, कौशांबी, रायबरेली और कानपुर समेत 10 सीटों पर संघ ने कैंडिडेट्स पर असहमति जताई थी। संघ से जुड़े नेताओं ने भी यहां पार्टी का विरोध किया था।

5. पर्सनालिटी कल्ट का विरोध

  • सीनियर जर्नलिस्ट आरती जेरथ के मुताबिक RSS को ‘पर्सनालिटी कल्ट’ की शैली पसंद नहीं आती है। अटल और आडवाणी ने भी ये शैली नहीं अपनाई थी। BJP के ये दोनों बड़े नेता पार्टी में अपने उत्तराधिकारियों को तैयार करके गए थे। BJP और संघ के कार्यकर्ता इसी मॉडल के आदी हैं। उनके लिए कांग्रेस जैसी दिखने वाली BJP में काम करना मुश्किल साबित हो रहा है।
  • सीनियर जर्नलिस्ट दीप हलदर RSS के एक सीनियर अधिकारी के हवाले से कहते हैं कि संघ चाहता था कि भाजपा का 2024 का लोकसभा चुनाव अभियान मोदी की लोकप्रियता, राष्ट्रीय सुरक्षा और संस्कृति तीनों मुद्दों पर हो। हालांकि, लोकसभा चुनाव में पूरा संदेश सिर्फ ‘मोदी की गारंटी’ तक सीमित होकर रह गया।

6. ग्राउंड पर BJP और RSS में कोऑर्डिनेशन का अभाव

  • RSS सदस्य रतन शारदा संघ के मुखपत्र ऑर्गेनाइजर में लिखते हैं कि RSS ‌BJP की कोई फील्ड फोर्स नहीं है। कई जगहों से जानकारी मिली है कि इस बार BJP ने RSS कार्यकर्ताओं से सहायता नहीं ली।
  • इंडिया टुडे रिपोर्ट में दिल्ली के रोहिणी इलाके के एक BJP सदस्य ने बताया कि पहले संघ BJP सदस्यों को अपनी बात रखने के लिए प्रशिक्षण शिविर आयोजित करता था। चुनाव का मौसम हो या न हो, शिविरों का आयोजन नियमित रूप से होता था। हालांकि, पिछले एक साल से इस इलाके में ऐसा कोई प्रशिक्षण शिविर आयोजित नहीं हुआ है।

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