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सुप्रीम कोर्ट बोला- सेक्स एजुकेशन वेस्टर्न कॉन्सेप्ट नहीं:भारत में इसकी शिक्षा बेहद जरूरी, इससे यूथ में अनैतिकता नहीं बढ़ती

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार, 24 सितंबर को कहा कि सेक्स एजुकेशन को वेस्टर्न कॉन्सेप्ट मानना गलत है। इससे युवाओं में अनैतिकता नहीं बढ़ती। इसलिए भारत में इसकी शिक्षा बेहद जरूरी है।

कोर्ट ने कहा कि लोगों का मानना है कि सेक्स एजुकेशन भारतीय मूल्यों के खिलाफ है। इसी वजह से कई राज्यों में यौन शिक्षा को बैन कर दिया गया है। इसी विरोध की वजह से युवाओं को सटीक जानकारी नहीं मिलती। फिर वे इंटरनेट का सहारा लेते हैं, जहां अक्सर भ्रामक जानकारी मिलती है।

CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने मद्रास हाईकोर्ट के एक फैसले को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। कोर्ट ने सोमवार को कहा कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी डाउनलोड करना और देखना POCSO और IT एक्ट के तहत अपराध है।

दरअसल, मद्रास हाईकोर्ट ने कहा था कि अगर कोई ऐसा कंटेंट डाउनलोड करता और देखता है, तो यह अपराध नहीं, जब तक कि इसे प्रसारित करने की नीयत न हो।

 

  1. एक रिसर्च से पता चला है कि सही सेक्स एजुकेशन देना जरूरी है। महाराष्ट्र में 900 से ज्यादा किशोरों पर किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि जिन छात्रों को प्रजनन और यौन स्वास्थ्य की सही जानकारी नहीं थी। उनमें जल्दी यौन संबंध बनाने की संभावना ज्यादा थी।
  2. यह बहुत जरूरी है कि हम सेक्स एजुकेशन के बारे में गलत धारणाओं को दूर करना शुरू करें। इसके फायदों के बारे में सभी को सही जानकारी दें, ताकि हम सेक्स हेल्थ के नतीजों को बेहतर बना सकें।
  3. बच्चों के खिलाफ अपराध सिर्फ यौन शोषण तक ही सीमित नहीं रहते हैं। उनके वीडियो, फोटोग्राफ और रिकॉर्डिंग के जरिए ये शोषण आगे भी चलता है। ये कंटेंट साइबर स्पेस में मौजूद रहते हैं, आसानी से किसी को भी मिल जाते हैं। ऐसे मटेरियल अनिश्चितकाल तक नुकसान पहुंचाते हैं। ये यौन शोषण पर ही खत्म नहीं होता है, जब-जब ये कंटेंट शेयर किया जाता है और देखा जाता है, तब-तब बच्चे की मर्यादा और अधिकारों का उल्लंघन होता है। हमें एक समाज के तौर पर गंभीरता से इस विषय पर विचार करना होगा।
  4. हम संसद को सुझाव देते हैं कि POCSO एक्ट में बदलाव करें और इसके बाद चाइल्ड पोर्नोग्राफी शब्द की जगह चाइल्ड सेक्शुअली एब्यूसिव एंड एक्सप्लॉइटेटिव मटेरियल (CSEAM) का इस्तेमाल किया जाए। इसके लिए अध्यादेश भी लाया जा सकता है। CSEAM शब्द सही तरीके से बताएगा कि यह महज अश्लील कंटेंट नहीं, बच्चे के साथ हुई घटना का एक रिकॉर्ड है। वो घटना जिसमें बच्चे का यौन शोषण हुआ या फिर ऐसे शोषण को विजुअली दिखाया गया हो।

केरल हाईकोर्ट ने 13 सितंबर 2023 को कहा था कि अगर कोई व्यक्ति अश्लील फोटो या वीडियो देख रहा है तो यह अपराध नहीं है, लेकिन अगर दूसरे को दिखा रहा है तो यह गैरकानूनी होगा। इसी फैसले के आधार पर मद्रास हाईकोर्ट ने 11 जनवरी को एक आरोपी को दोषमुक्त कर दिया था।

 मद्रास हाईकोर्ट के फैसले के बाद NGO जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन अलायंस और नई दिल्ली के NGO बचपन बचाओ आंदोलन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने 12 अगस्त को फैसला सुरक्षित रख लिया था।

जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन अलायंस ने कहा था कि हाईकोर्ट का आदेश चाइल्ड पोर्नोग्राफी को बढ़ावा दे सकता है। फैसले से ऐसा लगेगा कि ऐसा कंटेंट डाउनलोड करने और रखने वाले लोगों पर मुकदमा नहीं चलाया जाएगा।

केरल हाईकोर्ट के जस्टिस पीवी कुन्हीकृष्णन की बेंच ने यह फैसला दिया था। जस्टिस कुन्हीकृष्णन ने कहा था, पोर्नोग्राफी सदियों से प्रचलित है। आज डिजिटल युग में इस तक आसानी से पहुंच हो गई। बच्चों और बड़ों की उंगलियों पर ये मौजूद है।

केरल हाईकोर्ट की इस टिप्पणी को आधार बताते हुए मद्रास हाईकोर्ट ने 11 जनवरी 2024 को पॉक्सो एक्ट के एक आरोपी के खिलाफ केस को रद्द कर दिया था। मद्रास हाईकोर्ट ने कहा था कि अपनी डिवाइस पर ऐसा कंटेंट देखना या डाउनलोड करना अपराध के दायरे में नहीं आता है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इसी फैसले को खारिज किया और नए सिरे से केस सेशन कोर्ट को सौंप दिया है।

  1. भारत में ऑनलाइन पोर्न देखना गैर-कानूनी नहीं है, लेकिन इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट 2000 में पोर्न वीडियो बनाने, पब्लिश करने और सर्कुलेट करने पर बैन है।
  2. इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट 2000 के सेक्शन 67 और 67A में इस तरह के अपराध करने वालों को 3 साल की जेल के साथ 5 लाख तक जुर्माना देने का भी प्रावधान है।
  3. IPC के सेक्शन-292, 293, 500, 506 में भी इससे जुड़े अपराध को रोकने के लिए कानूनी प्रावधान बनाए गए हैं। POCSO कानून के तहत कार्रवाई होती है।

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