छत्तीसगढ़

रायपुर AIIMS में पहली बार हुई नार्को टेस्ट

नार्को एनालिसिस इस सिद्धांत पर आधारित है कि व्यक्ति झूठ बोलने के लिए अपनी कल्पना या इरादे का उपयोग करता है, जिसके लिए पूरी चेतना की आवश्यकता होती है। अर्धचेतन (ट्रांस) स्थिति में डालकर झूठ बोलने की क्षमता को समाप्त कर दिया जाता है। कुछ दवाओं (ट्रुथ सीरम) के प्रभाव से व्यक्ति आरामदायक और बातूनी हो जाता है। इस प्रकार अवरोध की कमी के कारण सत्य बोलने की संभावना बढ़ जाती है। अपराध जांच में सत्य को उजागर करने के अन्य तरीकों में सम्मोहन, पालीग्राफी और मस्तिष्क मानचित्रण शामिल हैं। एम्स के निदेशक (लेफ्टिनेंट जनरल, सेवानिवृत्त) डा. अशोक जिंदल ने कहा, एम्स में नार्को टेस्ट शुरू हो गया है। एम्स और फारेंसिक साइंस लेबोरेटरी के बीच अक्टूबर-2023 में हस्ताक्षरित एक समझौता ज्ञापन के माध्यम से संभव हुआ है। एनेस्थीसिया, जनरल मेडिसिन, इमरजेंसी मेडिसिन, फारेंसिक मेडिसिन और टाक्सिकोलाजी विभाग ने पूरी प्रक्रिया को सफलतापूर्वक किया है।छत्‍तीसगढ़ में पुलिस और जांच एजेंसियों को अब किसी भी मामले में आरोपी के नार्को टेस्ट के लिए हैदराबाद या दूसरे राज्य नहीं जाना पड़ेगा। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में नार्को एनालिसिस टेस्ट शुरू हो गया है। पुलिस विभाग की ओर से इसके लिए काफी दिनों से प्रयास किया जा रहा था। एम्स में पहला नार्को टेस्ट 27 जुलाई को किया गया। एम्स के फारेंसिक मेडिसिन और टाक्सिकोलाजी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर (डा.) कृष्णदत्त चावली ने बताया कि इसमें एक संदिग्ध से पूछताछ करने के लिए नारकोसिस का उपयोग किया जाता है, जिसमें एक दवा को व्यक्ति के शरीर में इंजेक्ट किया जाता है। देश में नार्को एनालिसिस का पहली बार वर्ष-2002 में गोधरा कांड जांच के दौरान उपयोग किया गया था

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