वरुथिनी एकादशी शनिवार को:इस दिन व्रत के साथ तीर्थ स्नान की परंपरा, मान्यता- अन्न और जलदान से मिलता है कई यज्ञ करने का पुण्य
वरुथिनी एकादशी 4 मई, शनिवार को है। वैशाख महीने में होने से ये व्रत बेहद पुण्यदायी हो जाता है। ग्रंथों में कहा गया है कि इस व्रत को करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है। इसे सौभाग्य देने वाला व्रत भी कहा जाता है।
इस तिथि पर सूर्योदय से पहले तीर्थ स्नान, दान और व्रत-उपवास करने की परंपरा है। वरुथिनी एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा और व्रत-उपवास का विधान पद्म, स्कंद और विष्णु पुराण में है।
कैसे करें स्नान-दान
वरुथिनी एकादशी पर सूर्योदय से पहले उठकर तीर्थ या पवित्र नदियों में स्नान करने का महत्व है। तीर्थ स्नान न कर पाएं तो घर पर ही पानी में गंगाजल की दो बूंद डालकर नहा सकते हैं। इसके बाद व्रत और दान का संकल्प कर सकते हैं।
इस दिन मिट्टी के घड़े को पानी से भरकर उसमें औषधियां और कुछ सिक्के डालकर उसे लाल रंग के कपड़े से बांध दें। फिर भगवान विष्णु के साथ मिट्टी के घड़े की पूजा कर लें। फिर घड़े को मंदिर में दान कर देना चाहिए।
श्रेष्ठ दान का फल देती है वरुथिनी एकादशी
वरुथिनी एकादशी पर व्रत करने से पुण्य फल मिलता है। मान्यता है कि इस व्रत को धारण करने से इस लोक के साथ परलोक में भी सुख मिलता है। ग्रंथों के मुताबिक इस दिन तिल, अन्न और जल दान करने का सबसे ज्यादा महत्व है।
ये दान सोना, चांदी, हाथी और घोड़ों के दान से भी ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। अन्न और जल दान से मानव, देवता, पितृ सभी को तृप्ति मिल जाती है। शास्त्रों के अनुसार कन्या दान को भी इन दानों के बराबर माना जाता है।
बच्चों की लंबी उम्र के लिए व्रत
मान्यता है कि वरुथिनी एकादशी व्रत से उम्र बढ़ती है, इसलिए मां अपने बच्चों की लंबी उम्र के लिए भी ये व्रत करती हैं। इस व्रत में भगवान विष्णु की पूजा भी होती है। मान्यता है कि वरुथिनी एकादशी व्रत से भगवान विष्णु के साथ लक्ष्मी जी भी प्रसन्न होती हैं। जिससे धन लाभ और सौभाग्य मिलता है।